Saturday, March 28, 2020

some words or my poetry

जन्म-मरण ना होता तो कुंडली बन पाती क्या,
भूत-भविष्य ना होता तो लक्ष्य ऐसी बन पाती क्या?
वक्त-रक्त सा ना होता तो विजय ऐसी मिल पाती क्या,
कर्म-धर्म का ना होता तो शव मिट्टी में मिल पाती क्या?
अच्छे हैं हम तबतक जबतक वे अजनबी है।
सच्चे हैं हम तबतक जबतक ये सरजमी है।।
भूख भी मिटती हैं तबतक जबतक उपजाऊ जमी है।
प्यास भी रहती है तबतक जबतक मिट्टी में नमी है।।
गहराई छुपा है तबतक जबतक ज्ञानी में कमी है।
परछाई छुपा है तबतक जबतक रोशनी की कमी है।।
जब सांस भी है परवान, तो क्या चाहत-क्या अरमान?
हैं मिट्टी की चाहत-मंजिल के अरमान, देखो बन गया एक दिल दो जान।।
मेरे दिल का शजर ,आप देखो एक नज़र।
मुश्किलों का डगर, राहों में हैं हमसफर।।
हाल कैसे बताएँ ,सहमे हैं जिस कदर।
मंजिल की है चाहत ,हर साँस में डगर।।
किस कदर शब्द बयाँ करें ,जिस का है हमको डर।
डर को ही ताकत बना चल दिए राहों पर।।
आकाश मेरा है पाताल मेरा है।
क्योंकि जमीर मेरा है।।
हवा मेरा है पानी मेरा है।
क्योंकि सरजमी मेरा है।।
जन मेरा है जहान मेरा है।
क्योंकि भारत महान मेरा है।।
घरबार मेरा संसार मेरा हर सांँस में बसे बस ख्वाब तेरा।
सुख भी मेरा और दुख भी मेरा चाहत में बसे बस नाम तेरा।।
सच्चाई मेरा अच्छाई मेरा पल भर में दिखाएंँ परछाई तेरा।
तू ख्वाब मेरा तू चाहत है मेरा कैसे भूल जाऊंँ परिवार मेरा।।
नज़रिया
उलझता सूलझता
उलझन सुलझी सी
राहें दिखाती है जैसे
रेगिस्तानों मेंं मंजिल बनाती है।

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