माँ बाप से मिलता है हमको दुलार,प्यार और संस्कार।
रहेंगे हमारे जब तक प्राण नहीं बदलेंगे आचार और विचार।।
क्या इश्क क्या इबादत ,हमको ना दुनिया सी आदत।
ज्ञान की है बस एक चाहत,चाहे मिट जाए हरपल की राहत।।
गलत रास्ते वहीं मिलते हैं,जहाँ अंधकार छाई रहती है।
झरने सा सुंदर रहकर भी, ख़ाई में ज़ा गिर पड़ती है।।
प्रकाश जहाँ मिलते हैं वहाँ ,स्वर्ग की सीढ़ी बनती है।
सुख तऩ में रहे ना रहे,पर कदम सही मंज़िल चुनती है।।
वो बचपन की क्या बात करूं जो बार-बार नहीं मिल पाती है।
अगर याद कभी आ जाए तो आंखें मेरी भर जाती है।।
आते ही गर्मी का मौसम बगीचे का याद दिलाती है।
जहां कभी हम खेला करते थे वो अब सपने में ही रोज़ आती है।।
जब आता है बरसात का मौसम याद बूंदों की आती है।
हम शौक़ से भिंगा करते थे जहां अब इमारतें ही दिख पाती है।।
बसंत ऋतु अखबार में देखकर झूले की याद सताती है।
पतझड़ तो अब होता नहीं पर दफ्तर आते जाते झूला खूब रुलाती है।।
महामारी की क्या बात करूं जो बार-बार चली आती है।
कभी कोलोरा और कभी करोना बनकर मानव पर कहर बरसाती है।।
हर १०० साल में एक बार अपना रुद्र रूप दिखाती है।
मानव के लिए मृत्यु बनकर प्रकृति को स्वच्छ बनाती है।।
ना हारे थे हम,ना हारेंगे हम।
युद्ध हो या कोरोना,सबको पछाड़ेंगे हम।।
अच्छाई रहती है जहां,
अंधकार कैसे रहेगी।
रात हो या सवेरा,
जगमगाहट हरदम दिखेगी।।
बुराई वह अस्त्र है।
जो हर वृक्ष के जड़ को,
धरती में ही सड़ा देता है।
No comments:
Post a Comment